(१) ज़िन्दगी
क्या ऐसा नहीं लगता,
ज़िन्दगी बे-वजह है,
क्योंकि गुमनाम है।
(२) ख़ुशी और ग़म
जो इक पल हो,
और हर पल हो की तमन्ना हो,
वह है ख़ुशी।
जो इक पल भी हो,
और हर पल न हो की तमन्ना हो,
वह है ग़म।
(३) संसर्ग
बादल और सूरज,
गरीबों की झोपड़ियों पर ही क्यों टूट पड़ते हैं?
संभव है,
अमीरों का संसर्ग उन्हें न भाता हो!
(४) रास्ता
ये अजीब बात है,
हर तरफ़ रस्ता है,
कभी ढूँढा,
तो मिलता नहीं है।
(५) क़सक
पलट के देखो कभी,
अजीब-सी अनुभूति होती है।
छूट जाता है सब कुछ,
घर-बार, वक़्त, दोस्त …
सामने भी तो कुछ नहीं होता,
सुनसान सड़क,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियाँ और,
एकाकीपन की एक क़सक।