शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।
किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी।
ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई।
बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई।
अमा रात्रि भी नहीं भर्त्सना योग्य कहीं।
भले पूर्णिमा खिले ज्योत्स्ना पूर्ण वहीं।
कवियों हित होना है मण्डन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।
उषा मधुर मुस्कान बिखेरे जग के हित।
अरुण रंग लालिमा लुटाए लेकिन मित।
अमृत वेला आनन्दित कर दे मन को।
नवल जागरण और संचरण दे तन को।
भासमान दिनकर का वन्दन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।
फूलों से मकरन्द अभी है चुआ नहीं।
सम्प्रति अक्षत रहे किसी ने छुआ नहीं।
पारदर्शिता तुहिन कणों से झाँक रही।
शुचिता पावनता की कीमत आँक रही।
अमल धवल शुचि प्रेम निमज्जन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।
*** डॉ. राजकुमारी वर्मा
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