निशा निशाकर, दिवा दिवाकर, हीरक जटित रश्मियाँ।
मोती तुहिन पुष्प पल्लव पर, यौवन खिलती कलियाँ।
खग-कलरव ज्यों बटुक वृंद ने, वैदिक मंत्र उचारा।
हृदय उल्लसित भाव उमंगित, जब यह दृश्य निहारा।
वृद्धि प्राप्त वन सुषमा रंजित, पर्ण विटप लतिकायें।
सुभग सरित-तट सिंधु महानद, आर्द्रिल उपत्यकाएं।
अद्भुत मिलन सितासित बहती, पृथक्-पृथक् दो धारा।
हृदय उल्लसित भाव उमंगित, जब यह दृश्य निहारा।
बना अतुल सौंदर्य जगत का, कण-कण वही समाया।
प्राणिमात्र के अमल हृदय को, निज आवास बनाया।
सबके प्रति हो आत्मभाव का, मृदु सम्बंध हमारा।
हृदय उल्लसित भाव उमंगित, जब यह दृश्य निहारा।
*** डॉ. राजकुमारी वर्मा
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