वर्षा ऋतु का स्वागत करते, जल ही जीवन का आधार।
अति वर्षा से हुई तबाही, रूहें काँप रही इस बार।।
फँसलें चौपट की वर्षा ने, जल-प्लावन दिखता हर ओर।
उजड़ गई हैं कई बस्तियाँ, नहीं देख पाये कुछ भोर।।
कई जगह पर गिरा बिजलियाँ,आफत बरसाते है मेघ।
जहाँ कही बादल फट जाता, लाशों का लगता अम्बार।।
कहर जहाँ कुदरत का छायें, नहीं किसी का चलता जोर।
कट जाता सम्पर्क सभी से, कौन किसी की पकड़ें डोर।।
बाढ़ निगोड़ी जब भी आती, टूटे नदियों के तट बन्ध।
शहर गाँव की सड़क न दिखती, बरसे जहाँ मूसलाधार।।
छेड़-छाड़ छोड़ें कुदरत से, अगर रोकना हमें विनाश।
नहीं प्रदूषण फैले तब ही, देख सके नीला आकाश।।
विकास यात्रा बाधित होती, मानव का ही इसमें दोष।
रुके तबाही नदी बाढ़ से, नदियों को जोड़ें सरकार।।
*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
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