नीलिमा के इस पटल पर, नव सबेरा आज कर तुम,
देख लो अदृष्ट अपना, यह सुनहली प्रात तेरी।
खुल गयी है यवनिका अब, यश प्रदा नव-जागरण की।
कर्म के पट पर लिखी है, भूमिका तव आचरण की।
जाग नव युग के सृजन पर, अब हुई है बात तेरी।
देख लोअदृष्ट अपना .....
यामिनी की पाठशाला, अब हुई है बन्द पगले।
नव सवेरा है उसी का, जो स्वयं ही आज सँभले।
इस सृजन पर हो न पाए, ओ मुसाफ़िर मात तेरी।
देख लो अदृष्ट अपना .....
अब तलक तू कर्म-पथ पर,स्वप्न ही बुनता रहा है।
कल्पना के मृदु सफर में, फूल ही चुनता रहा है।
चाहती माँ भारती अब, कर्म की सौगात तेरी।
देख लो अदृष्ट अपना.....
*** सीमा गुप्ता 'असीम'
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