उग्र महेश्वर हे परमेश्वर, शिव शितिकंठ अनंता।
हे सुरसूदन हरि कामारी, महिमा वेद भनंता।।
रुद्र दिगंबर हे त्रिपुरांतक, प्रभु कैलाश बिहारी।
हे शिव शंकर औघढ़ दानी, विनती सुनो हमारी।।
अष्टमूर्ति कवची शशि शेखर,देव सोमप्रिय नाथा।
गंगाधर अनंत खटवांगी, चरण धरूॅं निज माथा।।
अनघ भर्ग सर्वज्ञ अनीश्वर, विश्वेश्वर रहा निहारी।
हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।।
पंच वक्त्र श्रीकंठ शिवा प्रिय, तारक हे कैलाशी।
व्योमकेश हे विष्णू वल्लभ, जगत पिता सुख राशी।।
शोक हरो प्रभु सकल विश्व के, सारा जगत दुखारी।
हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।।
*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'
No comments:
Post a Comment