सच्चा-झूठा भाव धरे मानव जीता है।
धर्म कर्म परमार्थ नेह मानस गीता है।
नित्य कसौटी नव्य पटल पर कढ़ते हैं हम।
आँखों देखी बात कभी झूठी हो जाती।
झूठी बातों में सच्ची घटना खो जाती।
श्वेत श्याम पतवार नाव डगमग नीता है।
सच्चा-झूठा भाव धरे मानव जीता है।
सच्ची-झूठी चालों में जीवन खो जाता।
एक झूठ सौ झूठी बेलों को बो जाता।
काँधो पर ले बोझ बुद्धि चक्कर खाती है।
कुंठित पथ पर विकृत भावों की थाती है।
सत्य पद्म किंजल्क पवन लय में प्रीता है।
सच्चा-झूठा भाव धरे मानव जीता है।
सत्य शूल बन चुभ जाए वह सत्य गरल है।
देता जीवन त्राण झूठ वह सुधा तरल है।
स्वार्थ विरत हो झूठ सत्य कहलाता है वह।
करुणा कान्हा की सुनीति सहलाता है वह।
सत्य प्रवेता अश्व मनों के रजु सीता है।
सच्चा-झूठा भाव धरे मानव जीता है॥
*** सुधा अहलुवालिया
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