मेघदूत यायावर लेकर, ख़ुशियों का संदेश।
शृंग पार से आया न्यासी, सुखद लगे परिवेश।
चहुँदिक डोले बादल छौने, क्या मधुबन क्या थार।
दूब दूब पर मोती मानिक, भरे धरा के गोद,
पाकर आँचल को हुलसाये, अम्बर से सित धार।
उमड़ घुमड़ नभ से कजरारी, रही सँवारे केश।
-------------सुखद लगे परिवेश -------------
सावन-भादों की हरियाली, चंचल लगे अधीर।
घन घोर घटा घननाद घने, चमके चपला तीर।
तीज सावनी हर हर बम बम, शिव भक्तों के धाम,
पर्व सुखद हो रक्षाबंधन, कवच हमारे वीर।
नभ से आतुर चंदा झाँके, चैन नहीं लवलेश।
-------------सुखद लगे परिवेश -------------
सरस हो उठी बोझिल अवनी, जन-जन में उल्लास।
नभ से थल तक अनुपम रचकर, वैभव चातुर्मास।
मधुर मधुर अम्लान साधना, हृदय भरे अनुराग,
नित आये प्रभु सुखद सबेरा, लता करे अरदास।
थिरक उठे पग मन मयूर के, विनय सुनों भुवनेश।
-------------सुखद लगे परिवेश -------------
*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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