सर्दी बीती गर्मी बीती, अब आयी ऋतु वर्षा।
रिमझिम-रिमझिम बरसे सावन, सबका जियरा हर्षा॥
सखियों सँग जब झूलूँ झूला, हो उन्मन मन रसिया।
जाओ तुमसे मैं ना बोलूँ, साजन तुम हो छलिया॥1॥
तुम हो झूठे कान्हा! सारी, बात तुम्हारी झूठी।
चाहे बातें लाख बनाओ, अब है राधा रूठी॥
पल-पल राह निहारत बीते, निर्मोही सब रतिया।
जाओ तुमसे मैं ना बोलूँ, साजन तुम हो छलिया॥2॥
मिथ्या सारे वचन तुम्हारे, सुन-सुन कर मैं हारी।
सत्य-असत्य न जाना-परखा, यह दिल तुम पर वारी॥
यह सावन भी बीता जाये, आये नहि साँवरिया।
जाओ तुमसे मैं ना बोलूँ, साजन तुम हो छलिया॥3॥
कुन्तल श्रीवास्तव
कोलाबा, मुम्बई.
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