'सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला'
मज़मून 34 में चयनित सर्वश्रेष्ठ रचना
याद नहीं आया, पिछली
बार मिले कब थे?
किस बात के गिले और शिकवे क्यों थे?
एक पल में ही पिघल गयी बर्फ़ रिश्तों की,
दोनों सोचने लगी की अब तक जुदा क्यों थे?
बहुत याद किया बात कुछ समझ नहीं पायी।
इस बार ईद जब दीवाली से मिलने आयी।
किस बात के गिले और शिकवे क्यों थे?
एक पल में ही पिघल गयी बर्फ़ रिश्तों की,
दोनों सोचने लगी की अब तक जुदा क्यों थे?
बहुत याद किया बात कुछ समझ नहीं पायी।
इस बार ईद जब दीवाली से मिलने आयी।
ज़रा सा चौंक गयी और ज़रा सा घबराई,
ज़रा सा ठिठकी वो और ज़रा सा सकुचाई,
फिर दौड़ कर बस गले लग गयी दोनों
बहुत रोई मिल कर और बहुत ही पछताई।
हँसी होंठों पर आँख से ख़ुशी छलक आयी।
इस बार ईद जब दीवाली से मिलने आयी।
अपने मन्दिर का प्रसाद और मिठाई देकर,
रख दिये मन्दिर में सभी तोहफ़े लेकर,
गले मिली तो इस तरहा कि दो सहेली मिलें,
फिर द्वार पर विदाई दी हाथ मे हाथ लेकर,
नई ख़ुशियाँ और नई रोशनी लेकर चली आयी।
इस बार ईद जब दीवाली से मिलने आयी।
***संजीव जैन***
ज़रा सा ठिठकी वो और ज़रा सा सकुचाई,
फिर दौड़ कर बस गले लग गयी दोनों
बहुत रोई मिल कर और बहुत ही पछताई।
हँसी होंठों पर आँख से ख़ुशी छलक आयी।
इस बार ईद जब दीवाली से मिलने आयी।
अपने मन्दिर का प्रसाद और मिठाई देकर,
रख दिये मन्दिर में सभी तोहफ़े लेकर,
गले मिली तो इस तरहा कि दो सहेली मिलें,
फिर द्वार पर विदाई दी हाथ मे हाथ लेकर,
नई ख़ुशियाँ और नई रोशनी लेकर चली आयी।
इस बार ईद जब दीवाली से मिलने आयी।
***संजीव जैन***
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