सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला
के साहित्यिक मंच पर
मज़मून 31 में चयनित
सर्वश्रेष्ठ रचना
1
रूप शिखे ये नज़रे तुमको तोल रही हैं,
हर इक अदा दिल के दरवाज़े खोल रही हैं,
न न तुम अब अधरों को मत लरजाना प्रिये!
तेरी तो आँखें ही सब कुछ बोल रही हैं।
2
पीर की रीत भी चहकने लग गयी अब तो,
साँस भी आस से महकने लग गयी अब तो,
दर्द से आँख दो-चार करने लगा हूँ मैं,
टूटकर ज़िन्दगी दहकने लग गई अब तो।
3
आँखों में आभासित प्रियतम,
अधरों पर अभिलाषित प्रियतम,
तन-मन पर छाये रहते हैं,
मेरे प्रिय मधुमासित प्रियतम।
4
किसी के हम भी सहारे थे कभी,
किसी की आँख के तारे थे कभी,
वक्त ने बेवफ़ाई की वरना,
किसी को हम बहुत प्यारे थे कभी।
5
रफ़्ता-रफ़्ता इन आँखों को वो मंज़र बहुत अजीब दिखा,
रातों-रात बदलता ना जाने कितनों का ये नसीब दिखा,
जो घर-द्वार खड़ा रहता था भारी-भारी बुनियाद लिये,
उसका भी सामान बिखरता हमको यूँ बेतरतीब दिखा।
हर इक अदा दिल के दरवाज़े खोल रही हैं,
न न तुम अब अधरों को मत लरजाना प्रिये!
तेरी तो आँखें ही सब कुछ बोल रही हैं।
2
पीर की रीत भी चहकने लग गयी अब तो,
साँस भी आस से महकने लग गयी अब तो,
दर्द से आँख दो-चार करने लगा हूँ मैं,
टूटकर ज़िन्दगी दहकने लग गई अब तो।
3
आँखों में आभासित प्रियतम,
अधरों पर अभिलाषित प्रियतम,
तन-मन पर छाये रहते हैं,
मेरे प्रिय मधुमासित प्रियतम।
4
किसी के हम भी सहारे थे कभी,
किसी की आँख के तारे थे कभी,
वक्त ने बेवफ़ाई की वरना,
किसी को हम बहुत प्यारे थे कभी।
5
रफ़्ता-रफ़्ता इन आँखों को वो मंज़र बहुत अजीब दिखा,
रातों-रात बदलता ना जाने कितनों का ये नसीब दिखा,
जो घर-द्वार खड़ा रहता था भारी-भारी बुनियाद लिये,
उसका भी सामान बिखरता हमको यूँ बेतरतीब दिखा।
***प्रहलाद पारीक***
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