Sunday, 16 November 2014

आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास

सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला 
के साहित्यिक मंच पर 
मज़मून 28 में चयनित 
सर्वश्रेष्ठ रचना 




प्रथम स्वीकार मरण को कर,  
जीव लालसा त्यज। 
जाग्रत मन ही कर सके,  
तू बैठा क्यों व्यग्र। 
आये थे जग में जब
 सीमित साध थी तेरी, 
 फिर बहका क्यों आडम्बर में,  
बढ़ा प्यास घनेरी, 
लक्ष्य तेरा था मुक्ति सदा से, 
 बंधन में क्यों जकड़ा,
 मुक्ति राह का अनुगामी तू,  
जग में क्यों कर अटका,  
बन अवलम्ब दुखियों का,  
विपन्न देव तू मान। 
 उनकी बन जा आस। 
 सार्थक जीना जान,  
छोड़ भौतिक प्यास,  
कर ले थोड़ा हरि भजन, 
 आया तू इसीलिए, 
 ओटे क्यों कपास

*** छाया शुक्ला ***


 

No comments:

Post a Comment

धर्म पर दोहा सप्तक

  धर्म बताता जीव को, पाप-पुण्य का भेद। कैसे जीना चाहिए, हमें सिखाते वेद।। दया धर्म का मूल है, यही सत्य अभिलेख। करे अनुसरण जीव जो, बदले जीवन ...