सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला
के साहित्यिक मंच पर
मज़मून 29 में चयनित
सर्वश्रेष्ठ रचना
समय
का पहिया न्यारा भैया,
न्यारा विधि का लेखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
देखे
सूरज, चाँद, सितारे , उगते फिर छिप
जाते
जन्म लिया था कल जिसने, फिर देखा कल मर जाते
मैंने देखा राजमहल को, मिट्टी में मिल जाते
झोंपडियों की जगह खड़े, कुछ शीशमहल मदमाते
गाते थे जो प्यार के नगमें, विरह सुनाते देखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
जन्म लिया था कल जिसने, फिर देखा कल मर जाते
मैंने देखा राजमहल को, मिट्टी में मिल जाते
झोंपडियों की जगह खड़े, कुछ शीशमहल मदमाते
गाते थे जो प्यार के नगमें, विरह सुनाते देखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
बड़े
बड़े राजे-महाराजे,
पथ के बने भिखारी
भिखमंगों को बनते देखा, धन्ना सेठ हजारी
पाप कमाते देखा है जो, पुण्य किया करते थे
हाथ पसारे देखा है जो, दान दिया करते थे
गदराए यौवन को मैंने, पल-पल ढलते देखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
भिखमंगों को बनते देखा, धन्ना सेठ हजारी
पाप कमाते देखा है जो, पुण्य किया करते थे
हाथ पसारे देखा है जो, दान दिया करते थे
गदराए यौवन को मैंने, पल-पल ढलते देखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
देखा
मैंने पिता पुत्र को,
मरघट तक ले जाता
जिन हाथों से गोद खिलाया, उनसे चिता सजाता
देखा है कि माँ के सन्मुख, बेटी विधवा हो जाती
माँ करती सोलह- शृंगार, बेटी वैधव्य बिताती
प्रभु के घर में देना होता, हमको सारा लेखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
जिन हाथों से गोद खिलाया, उनसे चिता सजाता
देखा है कि माँ के सन्मुख, बेटी विधवा हो जाती
माँ करती सोलह- शृंगार, बेटी वैधव्य बिताती
प्रभु के घर में देना होता, हमको सारा लेखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
समय
का पहिया न्यारा भैया,
न्यारा विधि का लेखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
इस दुनिया को हर क्षण मैंने, रंग बदलते देखा
*** विश्वजीत शर्मा ‘सागर’***
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