सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला
के साहित्यिक मंच पर
मज़मून 22 में चयनित
सर्वश्रेष्ठ रचना
हर साल मिटाये जाते हैं, हर साल जलाये जाते हैं।
फिर भी ये इतने रावण, हर रोज कहाँ से आते हैं।।
कभी झूठ की जीत चाहिये, कभी सत्यता खलती है,
कभी झूठ की जीत चाहिये, कभी सत्यता खलती है,
कभी शान्ति की चाहत है, कभी शत्रुता पलती है।
मानव जाने कब से पल-पल ख़ुद अपने से लड़ता है,
मानव मन में साथ-साथ दोनो धारायें चलती हैं।।
देव और दानव के किस्से हर रोज सुनाये जाते हैं,
देव और दानव के किस्से हर रोज सुनाये जाते हैं,
फिर भी ये इतने रावण, हर रोज कहाँ से आते हैं।।
कभी मोह ने घेर लिया, कभी अहम् ने बीन बजायी,
कभी मोह ने घेर लिया, कभी अहम् ने बीन बजायी,
कभी क्रोध की ज्वाला है, कभी स्वार्थ की बदली छायी।
सच बतलाने की कोशिश हर बार हुयी मानव तुझको,
जब-जब विवेक की आँखों पर, आयी कोई भी परछाई।।
गाँधी भी पढ़ाये जाते हैं, गौतम भी सुनाये जाते हैं,
गाँधी भी पढ़ाये जाते हैं, गौतम भी सुनाये जाते हैं,
फिर भी ये इतने रावण, हर रोज कहाँ से आते हैं।।
कभी नशे में चूर हुये तो कभी लगे कुछ पल को जगने,
कभी नशे में चूर हुये तो कभी लगे कुछ पल को जगने,
कभी दिखे केवल अपने, कभी विश्व-विजय के सपने।
मानव कितनी सदियों से ख़ुद को धोखा देता आया,
कभी रक्त से राजतिलक, कभी लगे ईश्वर को जपने।।
हर बार दहन होती लंका और राम अयोध्या आते हैं,
हर बार दहन होती लंका और राम अयोध्या आते हैं,
जन-जन में रावण मिलते, घर-घर में लंका पाते हैं।।
हर साल मिटाये जाते हैं, हर साल जलाये जाते हैं।
हर साल मिटाये जाते हैं, हर साल जलाये जाते हैं।
फिर भी ये इतने रावण, हर रोज कहाँ से आते हैं।।
***** संजीव जैन *****
No comments:
Post a Comment