शिवसंकल्प लिए अभिमंत्रित, शुद्ध हृदय आह्वान से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
भ्रमित करे मनस्वार्थ है।
प्राणदायिनी मंत्र ऋचाएँ,
पुण्य पंथ परमार्थ है।
भस्मीभूत करें कटुता को, दूर रहें व्यवधान से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
चंचल माया के खेमें में
लगी होड़ दिन रात है।
जग व्यापी तृष्णा जो ठहरी,
झरते उल्कापात है।
यज्ञ भस्म से शुद्ध दिगंतर, करिए जन कल्याण से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
प्राच्य अंशु से सुखदा संचित,
योग भोग अविकार हों।
धन धान्य से भरी बखारियाँ,
स्वप्न सभी साकार हों।
पंचभूत से निर्मित काया, हित जीवन अनुदान से ।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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