जन्म-मरण संसार में, निस-दिन का है काम।
आज जन्म जिसने लिया, कल जाये प्रभु धाम॥1॥
जीव-जन्म बन्धन सदा, मरण क्षणिक है मुक्ति।
जन्म-मरण से मुक्ति की, मानव खोजे युक्ति॥2॥
फल वैसे मिलते उसे, जिसके जैसे कर्म।
मुक्ति मार्ग कैसे मिले, नहीं निभाये धर्म॥3॥
मानवता का धर्म ही, जिसने दिया बिसार।
स्वर्गलोक की कामना, किया न लोकाचार॥4॥
जन्म दिया जिसने तुम्हें, उसे गये थे भूल।
आज मृत्यु के द्वार पर, तुम्हें चुभेंगे शूल॥5॥
शाश्वत जीवन मृत्यु है, शाश्वत यही प्रसंग।
क्षणभंगुर जग जानते, पर न मोह हो भंग॥6॥
मोह-द्वेष का त्याग ही, जीव-मुक्ति आधार।
ईश-चरण अनुरक्ति से, जन्म-मरण उद्धार॥7॥
कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र
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