Thursday, 2 April 2015
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सकल सृष्टि - एक गीत
हे भुवनेश प्रकृति पति ईश्वर, जग उपवन के माली। सुन्दर सुरभित उपादान ले, सकल सृष्टि रच डाली। है अक्षुण्ण जो सृष्टि तुम्हारी, मरुत सदृश हैं ग...
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पिघला सूर्य , गरम सुनहरी; धूप की नदी। बरसी धूप, नदी पोखर कूप; भाप स्वरूप। जंगल काटे, चिमनियाँ उगायीं; छलनी धरा। दही ...
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प्रेम की जोत से। ज्ञान के स्रोत से। आत्म चैतन्य हो। प्रेम से धन्य हो॥1॥ भावना प्रेम हो। कामना क्षेम हो। वेद का ज्ञान हो। कर्म में...
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