दूर क्षितिज से उतरती, निर्मल कोमल भोर।
विचरण करने नाव से, नदिया में बिन शोर ।।1।।
प्रेम विवश ज्यों मिल रहे, धरा गगन के छोर।
दृश्य सुहाना देखकर, नाच उठा मन मोर।।2।।
राह पकड़ तू एक चल, गंध पुष्प सम होय।
मार्ग और सरिता कभी, रुके नहीं यह दोय।।3।।
सरिता से यह सीख लें, चलना आठों याम।
तरुवर सा परमार्थ हो, जिसमें चारों धाम।।4।।
**हरिओम श्रीवास्तव**
दृश्य सुहाना देखकर, नाच उठा मन मोर।।2।।
राह पकड़ तू एक चल, गंध पुष्प सम होय।
मार्ग और सरिता कभी, रुके नहीं यह दोय।।3।।
सरिता से यह सीख लें, चलना आठों याम।
तरुवर सा परमार्थ हो, जिसमें चारों धाम।।4।।
**हरिओम श्रीवास्तव**
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