चंद्र व्योम
देहयष्टि
विचरते तत्वबोध को
तत्सम शशि
उतावला, जिज्ञासु
परिभ्रमण में परस करता,
कितने ही चंद्र
अचंभित है
स्व के
चन्द्र संबोधन पर,
पयोधर पश्य पाकर
पीन पयोन
पीत पट
प्रसारता
पाहुने का आत्मबोध,
अंक में अंकित किये
अधरों के अधर बिम्ब
नभ ने संवारदी
मानस की चित्रावली
चित्रसेन चित्रांगदा के च्यवनप्राशरस
अभिसारकर
अविष्कृत करता
निजरूप
चंद्रलेखा के चितराम पर।
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***गोविन्द हाँकला
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