श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म।
श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।।
श्रम जीवन के वृक्ष को, सिंचित करता श्वेद।
फल छाया पल्लव सुमन, देकर हरता खेद।।
श्रम जीवन का मूल धन, श्रम जीवन का ब्याज़।
श्रम जीवन का घोंसला, श्रम नभ की परवाज़।।
सकल जगत के जीव सब, पहने श्रम का हार।
अपने-अपने पथ चले, फल देता दातार।।
कर्म हीन विधि हीन नर, रचता गृह फल हीन।
भाग्य हीन बन घूमता, मन वाणी धन दीन।।
श्रम श्रद्धा विश्वास है, श्रम ही साधन साध्य।
श्रम के बल से प्रकट हो, फल रूपी आराध्य।।
डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.
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