निशि अरु दिवस दिखत अति सुख कर।
उदित अरुण झट चल कर पथ पर।
मधुकर सरिस मधुर रस भर-भर।
हृदय-हृदय मिल बतरस कर-कर।
सुभग मनहरण चितवत हरियल।
जस विलसत सर खिलत कमल दल।
शुक पिक भ्रमत नचत अति हरसित।
विकसत सुमन नलिन सखि सर सित।
कुहु-कुहु कह पिक सबहि मन हरति।
प्रमुदित जन-मन विहँसत निरखति।
रमण करत मन थकित न धक-धक।
ऋतु अति सुभग हरत मन भरसक।
*** डॉ. राजकुमारी वर्मा ***
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