Saturday, 12 August 2023

 

झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।
भरि भरि लोचन पीहर पाती, पढ़ती ज्यों पुरवाई।

सखी सहेली सहज सुनातीं, ढुरि-ढुरि अँगना कजरी।
कँगना नूपुर झूमें झुमका, रिमझिम बरसे बदरी।
लेकर आयी राखी खुशियाँ, वीरन सजे कलाई
झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।

भूल न पाऊँ बाबुल गलियाँ, मात-पिता की छाया
बचपन की अठखेली यादें, मौन हृदय ललचाया।
भरी उमंगे तन-मन जागे, कोमल ज्यों तरुणाई।
झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।

उलझ-सुलझ के नैतिकता के, बुनकर नीड़ सयाने।
निभा रहे परिपाटी जग की, सहते युग के ताने।
बटछाया में "लता" सयानी, जीवन सधा बधाई।
झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

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