अर्थ देता काम को शुभकामनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ
संस्कृति ने सभ्यता के युद्ध हारे
कह रहे प्रक्षिप्त हैं सारी किताबें
अब लिखो तुम दानवों ने देव मारे
लुट गई घर में जगी संवेदनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ
राम केवल कल्पना है सत्य मानो
किंतु, रावण के दहन को पाप जानो
हैं असत्य प्रमाण बिखरे पत्थरों के
मौन होकर वक्ष पर अब उदर तानो
राह में हैं रक्तरंजित भावनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ
गल्प लगती आज पौराणिक कहानी
ह्रास संस्कृति पर यहाँ छलका न पानी
स्वर्ण लंका में बताओ कौन पापी?
द्वार पर याचक खड़े हैं पाप दानी
लोभ रचता लाभ की सब प्रार्थनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ
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डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.
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