(चार चरणों के इस वर्णिक दुर्मिल सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 8 सगण [अर्थात् लघु लघु गुरु, I I S] होते हैं)
गिरि खोह कदम्ब न डाल मिले तट खोज लये यमुना सगरे।
जल में थल में नभ में न मिले चट ढूँढ लये जग के मग रे।
वृषभान लली रुकि पूछ रहीं पट मोहि बता मग तू खग रे।
पट साँकल लाज हटा झट से मन मोहन तोर लसे दृग रे।।1।।
झट दीन्ह हटा जब लाज छटा गरजी घन घोर घमण्ड घटा।
चट जोर हिलोर उठी उर में सुर का सगरा अनुबंध कटा।
बिजुरी दमकी नभ में चतुरी अधरों बिच कंपन अंध सटा।
नभ बूँद गिरी पपिहा मुख में अरु मावस पावस चाँद छटा।।2।।
चिदानन्द "संदोह "
चट जोर हिलोर उठी उर में सुर का सगरा अनुबंध कटा।
बिजुरी दमकी नभ में चतुरी अधरों बिच कंपन अंध सटा।
नभ बूँद गिरी पपिहा मुख में अरु मावस पावस चाँद छटा।।2।।
चिदानन्द "संदोह "
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