शब्द करते शोर जब भी, कर्ण पर व्यभिचार,
शब्द होते मौन जब भी, भावना का ज्वार।
साँस चलना बंद हो जब, मौन हो आवाज,
ख़त्म होता वक़्त तो फिर, शब्द जाते हार।
आँख से हो बात जब भी, चुप्पी साधे शब्द,
गुप्त होती बात जब भी, तीसरा लाचार।
आपकी आवाज़ सुनकर, ताव खाते लोग,
शब्द होते शोर में ही, अर्थ से बेकार।
शब्द पकड़े सीखते हैं, छात्र देखो अर्थ,
शोर में ही खो रहे हैं, शब्द का आधार।
शोर गुल जब हो अधिक तो, शब्द होते लोप,
ध्यान से जो सुन रहे थे, वे सभी लाचार।
न साधे योग होता, मौन में आनंद,
साधना हो मौन रहकर, मौन में ही सार।
*****लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
ख़त्म होता वक़्त तो फिर, शब्द जाते हार।
आँख से हो बात जब भी, चुप्पी साधे शब्द,
गुप्त होती बात जब भी, तीसरा लाचार।
आपकी आवाज़ सुनकर, ताव खाते लोग,
शब्द होते शोर में ही, अर्थ से बेकार।
शब्द पकड़े सीखते हैं, छात्र देखो अर्थ,
शोर में ही खो रहे हैं, शब्द का आधार।
शोर गुल जब हो अधिक तो, शब्द होते लोप,
ध्यान से जो सुन रहे थे, वे सभी लाचार।
न साधे योग होता, मौन में आनंद,
साधना हो मौन रहकर, मौन में ही सार।
*****लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
श्रेष्ठ दोहो से सम्मानित करने के लिए हार्दिक आभार
ReplyDeleteश्रेष्ठ दोहो से सम्मानित करने के लिए हार्दिक आभार
ReplyDeleteआपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी।
Delete