पापी मन तू चेत ले, रखा न हरि का ध्यान।
आई अब है शुभ घड़ी, कर ले पावन स्नान।।1।।
<>
मेला है सिंहस्थ का, छलका अमृत नीर।
लालायित सब लोग हैं, बैठे क्षिप्रा तीर।।2।।
<>
गुरु का बंधु प्रवेश जब, सिंह राशि में होय।
तब लगता सिंहस्थ है, पूर्ण मनोरथ होय।।3।।
<>
क्षिप्रा के तट पर भई, साधु-सन्त की भीड़।
भोले के दर्शन करो, मन -पंछी तज नीड़।।4।।
<>
हरिद्वार को सब कहें, सदा मोक्ष का द्वार।
महापर्व सिंहस्थ में, हो जाये उद्धार।।5।।
<>
***** गुप्ता कुमार सुशील 'गुप्तअक्स'
वाह बहुत प्रसंसनीय दोहे, बधाई आपको
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय.
Delete