ऋतु शीत है, धरा तुहिन पोषित है, संगीत है,
मकरंद सरोरुह अर्जित है, भ्रमर गुंजित है,
मंजरी झूमे है, सुन वादन मन मदन ग्रसित है,
शाख शाख पलास पल्लवित है, बदन स्पंदित है।
पास आयेंगे कंत है, गलबहियाँ अनंत है,
अरुणोदित क्षितिज दिगंत है, आया हेमंत है,
रूपसी लिए रूप चहुंदिक पिय प्रतीक्ष्यन्त है,
कलत्व-मुदित राग इस ओर से उस पर्यन्त है।
***सुरेश चौधरी
अरुणोदित क्षितिज दिगंत है, आया हेमंत है,
रूपसी लिए रूप चहुंदिक पिय प्रतीक्ष्यन्त है,
कलत्व-मुदित राग इस ओर से उस पर्यन्त है।
***सुरेश चौधरी
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