Sunday, 15 November 2015

चंद दोहे


लीला लीलाधर करी, उठा पेट में दर्द
हारे वैद्य हकीम सब, दर्द बडा बेदर्द।।

नारद पूछें कृष्ण से, आपहि कहो निदान
भक्त चरण रज जो मिले, होय तबहि कल्यान।।

नारद घूमें सकल जग, काहू न दीन्ही धूरि
नरक गमन मन सालता, भागि चले सो दूरि।।

गोपी इक ऐसी मिली, सुनि नारद के बैन
पैर मले बृजभूमि में, आभा पूरित नैन।।

नारद गोपी से कहें, नरक मिलेगो तोहि। 
डरी नहीं हतभागिनी, समझाओ तो मोहि।।

श्याम दर्द जो ठीक हो, नरक सरग सब व्यर्थ। 
ज्ञानी ध्यानी आप हो, समझो प्रेमिल अर्थ।।

प्रिय हित ओढ़े सकल दुख, प्रेमी की पहचान
नाची जंगल मोरिनी, नारद जग अनजान।।

गोप कुमार मिश्र

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