प्रेम और विश्वास से, जिसका हृदय पवित्र।
दिखता उसके नेत्र में, इस दुनिया का चित्र॥1॥
प्रेम-अश्रु से जो करे, अपने दिल को साफ़।
उसके किये ग़ुनाह सब, रब कर देता माफ़॥2॥
सच्चाई के सामने, कर असत्य का त्याग।
अब भी कर ले रे मनुज!, निर्मल हिय से राग॥3॥
आन बान या शान से, आये ना कुछ हाथ।
निर्मल मन के प्रेम से, मिलता सबका साथ॥4॥
पावन प्रभु के नाम पर, करो नहीं पाखण्ड।
पाखंडी को एक दिन, देता ईश्वर दण्ड॥5॥
स्वच्छ रखो पर्यावरण, दूर रहेंगे रोग।
काया यह निर्मल रहे, करो निरंतर योग॥6॥
पावन है गंगा नदी, सुन्दर इसके तीर।
रखो नीर निर्मल सदा, हरे नदी भव पीर॥7॥
कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली,महाराष्ट्र.
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