छात्र घूमतें रात-रात भर, नहीं काल से वे डरते।
वाहन दौड़े फर्राटे भर, हवा संग बातें करते।।
गली-गली में आवारा से, कुत्ते घूमें खूब निडर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।
कृषक बने मजदूर शहर में, आखिर क्यों मजबूर हुए।
बेबस होकर गाँव निवासी, आज गाँव से दूर हुए।।
मन तो बसा हुआ गाँवों में, मजबूरी में करे सफर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।
ताल-तलैया निर्झर उपवन, मिले वही पर हरियाली।
हरे-भरे खेतों का स्वागत, करे सूर्य की नित लाली।।
देश प्रेम का बीज जहाँ पर, वही बसाये अपना घर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।
*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
हार्दिक आभार आदरणीय Vishwajeet Sapan जी ।
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