धैर्य से सोच कर कर्म करते रहें।
धर्म में ज्ञान की ज्योति भरते रहें।
राग बिगड़े नहीं जग चमन हम करें।
बावली पद्म की ज्यों लुभाती हमें,
भौँर की गूँज सुरभित बुलाती हमें।
पुष्प मकरंद से बोल झरते रहें।
शीघ्रता में किये कर्म बिगड़े कई,
क्रोध की आग में बाग उजड़े कई।
खेत चुँग जाएंगे खग अगर देर की,
क्यों घृणा में तपन राख की ढेर की।
मन विमल हो शुचित पाँव धरते रहें।
वाद संवाद में उर्मि का लास हो,
आस विश्वास में ईश का वास हो।
जय पराजय सहज प्रेरणा सिन्धु है,
भाव गुन लें समझ लें सुधा इन्दु है।
ग्लानि में अक्ष नम बिन्दु हरते रहें।
धैर्य से सोच कर कर्म करते रहें॥
*** सुधा अहलुवालिया
No comments:
Post a Comment