Sunday, 28 January 2024

घर आये भगवान - एक गीत

 



बेशक सदियाँ बीत गई हों, लगी हुई भी अर्ज़ी थी।
घर आए भगवान ख़ुदा की, इसमें पूरी मर्ज़ी थी।।

घर आए भगवान राम अब, कृष्ण सदाशिव आएँगे,
राम लला को लाने वाले, भक्त इन्हें भी लाएँगे।
घोर तपस्या भक्तों की यह, व्यर्थ कहो क्यूँ जाएगी,
काशी मथुरा नगरी से भी, ख़बर ख़ुशी की आएगी।।

अफ़्वाहों पर नज़रें डालो, बातें कितनी फर्ज़ी थी,
घर आए भगवान ख़ुदा की, इसमें पूरी मर्ज़ी थी।।

धर्म, जाति की दीवारों से, मत अपना माथा फोड़ो,
हाथ बढ़ाओ मिल कर सारे, ये झूठे झगड़े छोड़ो।
राजनीति का खेल न खेले, वो कैसा फिर नेता है,
न्याय मिला कुछ देरी से पर, अंत भला सुख देता है।।

वहशी इंसानों की चालें, लालच था खुदगर्ज़ी थी,
घर आए भगवान ख़ुदा की, इसमें पूरी मर्ज़ी थी।।

ज़र्रे ज़र्रे में वो रहता, बात सभी ने है मानी,
राम खुदा में फ़र्क करे जो, छोड़ो फ़ितरत शैतानी।
मीठी स्वर लहरी में गाओ, 'देश’ राग कितना प्यारा,
धरती से अम्बर तक गूँजे, जय जय भारत का नारा।।

दफ़न करो मिट्टी में अब तो, जितनी कीना-वर्ज़ी थी,
घर आए भगवान ख़ुदा की, इसमें पूरी मर्ज़ी थी।।

*** सूरजपाल सिंह, कुरुक्षेत्र।

कीना-वर्ज़ी – वैर भाव रखना, दुश्मनी करना

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