बुरा न मानो होली है,
कवियों की ये टोली है,
रंग अबीर गुलाल यहाँ,
भंग 'सपन' ने घोली है।
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होली पर कुछ रंगारंग दोहे -
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होली की शुभकामना, मैं देता हूँ आज।
सुधिजन और जनानियां, बनें सभी के काज।।1।।
होली के रँग में रँगे, खेलें रंग गुलाल।
कोई भी रखना नहीं, मन में आज मलाल।।2।।
भंग सिया जी घोंटती, लिये सपन जी रंग।
तायल और फणीन्द्र के, बदल गये रँग ढंग।।3।।
सागर जी के सँग रजत, मचा रहे हुडदंग।
गौतम जी रँग डालते, पहन पजामा तंग।।4।।
लडीवाल सँग चौधरी, बजा रहे हैं ढोल।
पारिक और सुशील जी, भंग रहे हैं घोल।।5।।
मंजुल जी के सँग रमा, लिये गुलाल अबीर।
भर पिचकारी मारतीं, नयनों से भी तीर।।6।।
गुझिया लांईं है निशा, और रमा जी खीर।
ब्रह्माणी जी नाचतीं, कविगण हुये अधीर।।7।।
शर्मा जी शरमा रहे, जो ग़ज़लों के वीर।
पिचकारी ले आ गये, सिन्हा जी गम्भीर।।8।।
आराधना ज्योत्सना, दीपशिखा परमार।
नीता दानिश शजर जी, सब पर चढ़ा खुमार।।9।।
झूम रहे गोविंद जी, गायब गोपकुमार।
नाच रहे रविकांत जी, गाते राजकुमार।।10।।
रानो जी दिखतीं सरस, मटकातीं हैं नैन।
नन्हीं के सँग हैं कुसुम, मारें छुप छुप सैन।।11।।
जैन अनीता जी सदा, लिखने में ही व्यस्त।
अनिल और अनमोल जी, अपने में ही मस्त।।12।।
पचलंगिया सतीश जी, भर भर डालें रंग।
हैं संजीव नवीन जी, सभी करें हुडदंग।।13।।
कविगण हैं तुकतान में, सबका यही खयाल।
जो देखे तिरछी नजर, मल दूँ उसे गुलाल।।14।।
**हरिओम श्रीवास्तव**
कोई भी रखना नहीं, मन में आज मलाल।।2।।
भंग सिया जी घोंटती, लिये सपन जी रंग।
तायल और फणीन्द्र के, बदल गये रँग ढंग।।3।।
सागर जी के सँग रजत, मचा रहे हुडदंग।
गौतम जी रँग डालते, पहन पजामा तंग।।4।।
लडीवाल सँग चौधरी, बजा रहे हैं ढोल।
पारिक और सुशील जी, भंग रहे हैं घोल।।5।।
मंजुल जी के सँग रमा, लिये गुलाल अबीर।
भर पिचकारी मारतीं, नयनों से भी तीर।।6।।
गुझिया लांईं है निशा, और रमा जी खीर।
ब्रह्माणी जी नाचतीं, कविगण हुये अधीर।।7।।
शर्मा जी शरमा रहे, जो ग़ज़लों के वीर।
पिचकारी ले आ गये, सिन्हा जी गम्भीर।।8।।
आराधना ज्योत्सना, दीपशिखा परमार।
नीता दानिश शजर जी, सब पर चढ़ा खुमार।।9।।
झूम रहे गोविंद जी, गायब गोपकुमार।
नाच रहे रविकांत जी, गाते राजकुमार।।10।।
रानो जी दिखतीं सरस, मटकातीं हैं नैन।
नन्हीं के सँग हैं कुसुम, मारें छुप छुप सैन।।11।।
जैन अनीता जी सदा, लिखने में ही व्यस्त।
अनिल और अनमोल जी, अपने में ही मस्त।।12।।
पचलंगिया सतीश जी, भर भर डालें रंग।
हैं संजीव नवीन जी, सभी करें हुडदंग।।13।।
कविगण हैं तुकतान में, सबका यही खयाल।
जो देखे तिरछी नजर, मल दूँ उसे गुलाल।।14।।
**हरिओम श्रीवास्तव**
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