जल-जल करके दीप सरीखे, मैंने खुद को मिटा लिया,
प्यार का मेरे बेदर्दी ने, देखो कैसा सिला दिया।
अपने सारे सुख दे डाले, मैंने उसकी झोली में,
उफ़-उफ़ करके मैं तो जलती, रही प्यार की होली में।
रौंद के मेरी ख़ुशियाँ सारी, ख़ुद के दिल को चमन किया,
प्यार का मेरे बेदर्दी ने, देखो कैसा सिला दिया।
तनिक नहीं दुख होता मुझको, एक बार सच कह देता,
मजबूरी थी उसकी माना, समझौता फिर कर लेता।
तोड़ के मेरे अरमाँ सारे, वो आहत कर गया हिया,
प्यार का मेरे बेदर्दी ने, देखो कैसा सिला दिया।
***** नीता सैनी, दिल्ली
प्यार का मेरे बेदर्दी ने, देखो कैसा सिला दिया।
तनिक नहीं दुख होता मुझको, एक बार सच कह देता,
मजबूरी थी उसकी माना, समझौता फिर कर लेता।
तोड़ के मेरे अरमाँ सारे, वो आहत कर गया हिया,
प्यार का मेरे बेदर्दी ने, देखो कैसा सिला दिया।
***** नीता सैनी, दिल्ली
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