हम सुधरें तो स्वतः सुधरे समाज
ऐसे सिद्ध हों एक पंथ दो काज
व्यक्ति व्यक्ति रहे प्रेम से हिल मिल
आपसी विश्वास चमके झिलमिल
परिवार बनें सौम्य बरसे सुख सरस
वैमनस्य का हो जाये समूल नाश
प्रेममय हो जाये सकल समाज
ऐसे सिद्ध हों एक पंथ दो काज
न घूस दें न घूस लें का प्रण करें पूरा
किसी का भी सपना न रहे अधूरा
कर कड़ी मेहनत दरिद्रता को भगायें
आओ भ्रष्टाचारियों की बाट लगायें
साफ़ सुथरा हो जाये सकल समाज
ऐसे सिद्ध हों एक पंथ दो काज
बेटा हो या बेटी स्वागत करें दिल से
क्रूरता को त्याग कहीं फेंक दें दिल से
समानता से संस्कार-परवरिश दें
दोनों को ही सशक्त इंसान बना दें
संतुलित हो जाये सकल समाज
ऐसे सिद्ध हों एक पंथ दो काज
काम क्रोध मद मोह लोभ को भगा
संतोष शान्ति क्षमा को गले लगा
धर्म सम्प्रदाय के झगड़ों को मिटाकर
मानवता की सुरभि चहुँ ओर फैलाकर
समतामय हो जाये सकल समाज
ऐसे सिद्ध हों एक पंथ दो काज
हम सुधरें तो स्वतः सुधरे समाज !
ऐसे सिद्ध हों एक पंथ दो काज !!
**** डॉ. अनिता जैन "विपुला"
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