बोलो न माँ,
कब आएँगे पापा ?
अधीर होकर पूछा था,
मासूम अवि ने,
फिर वही प्रश्न ।
देख लिया था उसने,
औरों को पापा की गोद में,
चॉकलेट, खिलौने संग,
ललचाई दृष्टि लिए,
दौड़ा आया।
पापा की तस्वीर को देखता,
बुला दो ना अब,
आखिर कितना काम
उन्हें ?
"मन लगाकर पढ़ोगे,
तो जल्दी से आ
जाएँगे पापा"
जल्दी से पढ़ने बैठ
गया था वो,
कि अब ज़रूर आ
जाएँगे पापा।
जो वादा किया था तुमने,
आँखें
मूँदते-मूँदते,
संभाल लेना सब-कुछ,
नहीं सह पाएगा वह
अबोध,
सीने पर पत्थर
रखकर,
पार्थिव को तो
विदा किया था मैंने,
पर सहेज लिया था
तुम्हें,
प्राणों में भरकर,
सिर्फ एक झूठ-
जो था उस सच से
बड़ा,
दे रहा था उस
मासूम को,
हिम्मत व हौसला,
जीने व आगे बढ़ने
का,
कि बस आते ही होंगे
पापा,
दे रहा था मुझे हौसला,
था आभास संग
विश्वास-
जैसे साथ में हो
हर पल,
कांधे पर हाथ रखे,
जगाते हुए प्रेरणा,
बस हिम्मत मत हारना,
चलते रहो।
**आराधना
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