Sunday, 1 February 2015

घनाक्षरी














गुम सुम बैठी बैठी तपती है विरह में, 
राह देखे पिऊ का ये पिऊ नाम जपती
कामदेव तीर खींचे बढ़ते ही आ रहे हैं, 
मधुमास अगन में कोकिला ये तपती
पात शेष एक नहीं वृक्ष भी नगन हुए, 
धरा पीत वसना हो आज खूब खपती
रवि संग रंग कर मगन है गगन ये, 
पिक की ये पलक तो पल को न झपती
           

             *** छाया शुक्ला ***

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