कभी पूर्णिमा कभी अमावस, सुख दुख आनी जानी
चन्द्र कला सा है यह जीवन, कहती रात सुहानी।
पल में तोला पल में माशा,
प्रभु का खेल गजब है।
अभी आस है अभी निराशा,
मन का भाव अजब है।
सोच समझकर कदम बढ़ाना, राहें यह अनजानी,
चन्द्र कला सा है यह जीवन, कहती रात सुहानी।
कहीं मिलेगी धूप विरह की,
कहीं मिलन की छाया।
मुश्किल है ये वर्ग पहेली,
कोई समझ न पाया।
सच्चाई यह जानी सबने, पर कितनों ने मानी,
चन्द्र कला सा है यह जीवन, कहती रात सुहानी।
राजा है तू या फकीर है,
इक दिन सबको जाना।
ऊँचे ऊँचे महल बनाए,
पर वो नहीं ठिकाना।
विधना के सब लेख निराले, अद्भुत उसकी कहानी,
चन्द्र कला सा जीवन है यह, कहती रात सुहानी।
*** निशा कोठारी
No comments:
Post a Comment