भव
सिन्धु के दो किनारे, इस पार अरु उस पार है,
सतत जीवन धारा बहे, इस पार फिर उस पार है।
सतत जीवन धारा बहे, इस पार फिर उस पार है।
एक और सुख सुमन खिलते, चरण सिद्धी चूमती,
एक और दुःख से बिलखते, विपत्ति काली घूरती।
यश कही सम्मान मिलता, द्रव्य-मुद्रा, हार है,
दोष-अपयश मिलता कहीं, कष्ट-दुसह प्रहार है।
स्वप्निल प्यार पलता कहीं, यौवन प्रिये मधुमास है,
उर निराशा से दहकता जर जगत अरि त्रास है।
गाना कहीं, रोना कहीं, खोना-पाना जग यही,
अपने-पराये होते यहीं, मरना-जीना भी यहीं।
कुछ पावन गंगा जल नहाते, कुछ शुष्क प्यासे होठ हैं,
कुछ पले नालिओ में, जनु विधना करे जग शोध है।
गूँजती शहनाई धुन यहाँ, गाते सुरीले राग है,
उधर लाश निकली द्वार से, रुदन मचा कुहराम है।
विषम प्रकृति का खेल जग, सुख-दुःख भय रेत है,
वैभव माया दीनता, छल विपदा का भयंकर प्रेत है।
काल की गति विषम देखो, होता उदय रवि अस्त है,
कोई मदारी छुप नचाता नचता जगत अभ्यस्त है।
अविरल जिन्दगी अभिनय चले, रंग-मंच जग भाव है,
निर्माता-निर्देशक है कोई, पात्र हम विधि भव प्रभाव है।
*** हरिहर तिवारी
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