'सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला'
मज़मून 36 में चयनित सर्वश्रेष्ठ रचना
किसी झील के मचले
पर्वत शिखर को देखा,
समंदर हो गया उष्मित,
पृष्ठ में आ बदरा बाँह भरने लगे,
शिखरों ने कसमसा
पर्वतों को बात बतलायी,
गहराई झील की उफनी
कम्पन पा किनारों के,
कूल, तरु नतमस्तक
पयोन प्यासे देखे,
समंदर आस में कि
झील से उत्तर नहीं आते,
झील हो
पानी-पानी प्यास अधरों पर
कहे कैसे कि
युगों से बावरी हूँ मैं,
प्रीत पाने को
मेरे शिखरों को छूकर ही
निगोड़े लौट जाते हो
युगों से प्यासी को
प्यासी छोड़ जाते हो,
किनारे जिस दिन
गह्वर के लावे से
झुलस जायेंगे सुनो
शिखर नत हो कहेंगे किस्से
समंदर प्यास देता है
बुझाना प्यास ना जाने
मुझसे मिलना हो फिर भी
आना झील के तीरे
तने शिखर तुम्हारी
बाट जोहेंगे
सच तुम्हारी बाट जोहेंगे।
***गोविन्द हाँकला***
आदरणीय सादर नमन !
ReplyDeleteजीवन में यूं तो कई पल होते हैं जो खुशियान दे जाते हैं किन्तु अपनो से जब भी स्नेह सम्मान रूप में प्राप्त हो जाये तो कर्म की सार्थकता और अनुभूतियों का स्तर शिखर पर होता है।
इस आत्मीय स्नेह के लिय सादर नमन आदरणीय श्री सुरेश चौधरी साहब एवम श्री विश्वजीत सपन साहब को ।
जय माँ !!!
सादर आभार आपका आदरणीय। सर्वप्रथम ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति के लिये हृदय से आभार आपका। आपके स्नेहाशिष से मन प्रसन्न हुआ। इसी प्रकार स्नेह बनाये रखें।
Deleteसादर नमन