सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला
के साहित्यिक मंच पर
मज़मून 16 में चयनित
सर्वश्रेष्ठ रचना
पल-पल सारा जीवन खोते,
मरी
रूह को कान्धे ढोते।
रौब जमाते हैं अन्धेरे अब,
चाँद सितारे छुप-छुप रोते।
रहा भरोसा जिन पर भारी,
सब के सब बेपेंदी लोटे।
उम्मीद क्या कोतवाल से,
मोटी खाल, अक़्ल के मोटे।
गये शहर में गाँव के पंछी,
लुट के बुद्धू घर को लौटे।
भूख से बच्चे उकलाते हैं,
चोर उचक्के चैन से सोते।
पौध लगानी थी सपनों की,
रहबर अब बारूद हैं बोते।
झूठ बिके महँगे दामों में,
दाम बड़े और सिक्के खोटे।
आदम क़द सब पुतले देखे,
नाम बड़े और दर्शन छोटे।
निज हित के लिये तो समूचा मानव जाती संघर्षरत है किन्तु जो अपना जीवन हो या अपना ब्लॉग मानवतावाद को समर्पित करे वाह सराहनीय है ,आपको इस पुनीत कार्य के लिये कोटिश: नमन सादर अभिनन्दन आदरणीय सपन सर जी |
ReplyDeleteसुनीता शर्मा जी,
Deleteआपका हृदय से आभार जो आपने मुझे इस योग्य समझा। स्नेह बना रहे।
सादर नमन