ख़ुलूस-ए-दिल गरीबों की करे इमदाद ने'मत है
यही पूजा है हिंदू की ये मुस्लिम की इबादत है
बनाया है तुम्हें काबिल ख़ुदा ने ख़ास है मकसद
करो पूरा उसे हँसकर अगर थोड़ी लियाक़त है
जो रोतों को हँसा देता वही भगवान को भाता
दुआओं में असर होगा यही उसकी निज़ामत है
यहाँ कुछ लोग हैं ऐसे नहीं ग़ैरत ज़रा उनमें
मदद मांगे हमेशा वो भला कैसी ये फ़ितरत है
अपाहिज लोग हिम्मत से सदा जीते हैं दुनिया में
सहारा ख़ुद-ब-ख़ुद बनते ग़ज़ब ऐसी हक़ीक़त है
मदद करके जताने से सिला हासिल नहीं होता
सदा नेकी बहा देना समन्दर में लताफ़त है
सुनो 'सूरज' मुसीबत में अदू को माफ़ कर देना
बिना बोले मदद करना यही सच्ची सख़ावत है
*** सूरजपाल सिंह, कुरुक्षेत्र ।
ख़ुलूस-ए-दिल = हृदय की पवित्रता
निज़ामत = शासन संबंधी व्यवस्था या प्रबंध
लताफ़त = .पाकीज़गी, सुन्दरता
अदू = शत्रु
सख़ावत = दानशीलता
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