तेरे नैनों का महाकाव्य, पढ़ते जीवन बीता।
हृदय-सिंधु का प्रेम-कोष कब, हुआ तुम्हारा रीता।।
जीवन-सर के सरस सलिल में, मनहर कंज खिलाए।
संग तुम्हारे हमने सुभगे , छप्पन वर्ष बिताए।।
खिले प्रसून सदा मन- कानन, रहती सतत बहारें।
'चंद्र-सरोज' सुभग वनमाली, जीवन बाग सॅंवारें।।
जहाॅं कहीं भी घिरी घटाऍं, आशा-दीप जलाए।
संग तुम्हारे हमने सुभगे, छप्पन वर्ष बिताए।।
'चंद्र' बधाई देता खुद को, पाकर साथ तुम्हारा।
शक्ति बिना शिव सदा अधूरा, कुछ भी नहीं हमारा।।
सुख का सागर जहाँ लहरता, कैसे शोक सताए।
संग तुम्हारे हमने सुभगे, छप्पन वर्ष बिताए।।
*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'
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