Sunday, 18 June 2023

ज़ख्म पुराना बोलेगा - एक गीत

 

डर लगता हर ज़ख्म पुराना बोलेगा,
जब भी मेरा दर्द निमाणा बोलेगा।

कोसों तक चलने की हिम्मत वाले हैं,
कब देखे तलवों ने कितने छाले हैं।
मंज़िल को पाने की इस ठानी ज़िद में,
पाँवों के भी ये अंदाज़ निराले हैं।
साथ निभाता दिल मरजाणा बोलेगा!
जब भी मेरा दर्द निमाणा बोलेगा।

जिन धागों को बुनकर जोड़ा नाता था,
लम्हों की तकली पर उनको काता था।
चुन चुन कर उनमें थे सारे ख़्वाब गढ़े,
रेशा रेशा रंग नए लहराता था।
साख हुनर की ताना बाना बोलेगा,
जब भी मेरा दर्द निमाणा बोलेगा।

लब चुप हैं कुछ कहने का ये वक़्त नहीं,
कितना कुछ है शब्दों में जो व्यक्त नहीं।
क्या क्या टूटा क्या क्या पीछे छूट गया,
अंकित है सब कुछ स्मृतियों में त्यक्त नहीं।
सन्नाटे को तोल सयाणा बोलेगा,
जब भी मेरा दर्द निमाणा बोलेगा।

*** मदन प्रकाश सिंह

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