कर्म-क्षेत्र संसार यह, कर्म यहाँ व्यापार।
सत्य सोच से हो सके, जीवन-नौका पार॥
करो काम जब भी नया, हिय में करो विचार।
नहीं अधूरा छोड़ना, करना जतन हजार॥
आयेंगे व्यवधान सौ, हल करना हर बार।
आलस लालच तज मृषा, दो सन्मति को धार॥
डाँड चलाये बिन फँसे, नाव सदा मँझधार।
सत्य सोच से हो सके, जीवन-नौका पार॥
सही सोच से सर्वदा, जग का हो उद्धार।
जग के हित में ही बसा, जगती का विस्तार॥
न्याय-धर्म की राह ही, जीवन का सुख-सार।
सबके हित के ध्यान से, मिल जाये संसार॥
दिल में सदा ख़याल हो, मिले मुक्ति का द्वार।
सत्य सोच से हो सके, जीवन-नौका पार॥
कुन्तल श्रीवास्तव,
डोंबिवली, महाराष्ट्र।
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