Sunday, 27 January 2019

दोस्ती




जिंदगी की धूप जब जब गुनगुनी लगने लगे ।
चार दिन का ये सफ़र जब ज़िन्दगी लगने लगे ।
उस खुदा की है इनायत यूँ समझ लेना सभी,
दोस्ती जब आपको इक बन्दगी लगने लगे ।।
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*** गुरचरन मेहता 'रजत' ***

Sunday, 20 January 2019

चंदा


निकला शशि जब व्योम पर, आई तेरी याद।
प्रेम प्रेयसी सत्य ही, सब कुछ तेरे बाद।।1।।

विधु से पूछूँ मैं सदा, अब तक मिले न नैन।
दिखती कैसी प्रेयसी, हर पल मैं बेचैन।।2।।

इंदु कहे अब भानु से, मेरी क्या औकात।
लेकर तेरी रोशनी, बाँटू सारी रात।।3।।


*** राहुल प्रताप सिंह 'प्रताप' ***

Sunday, 13 January 2019

अपने पर खोल रही



नभ में अपना बल तोल रही।
चिड़िया अपने पर खोल रही।


संशय न रहे किसके मन में,
किसका प्रिय! चित्त अडोल रहा।
वह कौन भला चित का नद है,
जिसमें न कभी बहु द्वंद्व बहा।।


अवसर सब जीवन के निशिदिन।
वह खूब टटोल-टटोल रही।।


जिसको बहु अन्न मिला जग में,
वह आलस में न उठा न चला।
जिसके सपने सब सत्य हुए,
वह त्याग धरा न हिला न डुला।।


उसकी सुधि में अपनी धरती।
नभ में वह यद्यपि डोल रही।।


गति जीवन की सबकी कठिना,
सबको पड़ता डग भी भरना।
जब ढोल-मृदंग बजें विधि के,
उनपे सबको पड़ता नचना।।


उड़ती स्वर में मृदु गीत लिए।
करती हर भोर किलोल रही।।


*** पंकज परिमल***

Sunday, 6 January 2019

स्वागतम्‌ नववर्ष का


स्वागतम्‌ नववर्ष का।
आचमन हो हर्ष का।

स्वप्न की यह रात आई तो मगर।
ढूँढने पर मिली फिर वो ही डगर।
साल पर प्रति साल का है आवरण-
अवनि पर तारे बिछा पाता अगर।
बीज बोता कर्ष में उत्कर्ष का।

अंक-माला पूर्ण हो गत साल की।
द्युत उठी इतिहास की नव पालकी।
अक्ष-सीपी माँगती है स्वाति-कण-
बेबसी में रेख धुँधली भाल की।
है उगा यह प्रात भी संघर्ष का।

है कहाँ अभिनव दिशाओं का वलय।
उदधि-जीवन, बूँद-मानस का विलय।
नित्य उतरे है गगन से रश्मि-दल-
शुचि सजाता धरा का अनुपम निलय।
अब नया विमर्श क्या है प्रकर्ष का।

*** सुधा अहलूवालिया ***


धर्म पर दोहा सप्तक

  धर्म बताता जीव को, पाप-पुण्य का भेद। कैसे जीना चाहिए, हमें सिखाते वेद।। दया धर्म का मूल है, यही सत्य अभिलेख। करे अनुसरण जीव जो, बदले जीवन ...