ख़ुश है न! जो अब गूँजती लय ताल है,
तेरा सुना ऐ ज़िन्दगी क्या हाल है।
अब भी मसायल हैं वही या कम हुए,
बेदम रहे जो ख्व़ाब, फिर कायम हुए ?
क्या वक़्त ने ढीले किये तेवर ज़रा,
कुछ फूल भी हँसकर कभी हमदम हुए ?
या फिर वही, ढीली पुरानी चाल है,
तेरा सुना ऐ ज़िन्दगी क्या हाल है।
बदले मिले क्या अब तुझे मंज़र यहाँ,
ईकाइयों में बँट चुके से घर यहाँ,
बाजार ही अब आंगनों पे छा गया,
छोटे अहम् हैं और भारी सर यहाँ,
गलती नहीं अब हर किसी की दाल है!
तेरा सुना ऐ ज़िन्दगी क्या हाल है।
निर्बाध रखना अब ख़ुशी को राह में
दीवानगी कायम रहे इस चाह में,
ये हुस्न तेरा साँस पर तारी रहे,
हम भी जियें खुलकर कभी उत्साह में,
रखना हरी हर आस की इक डाल है,
तेरा सुना ऐ ज़िन्दगी क्या हाल है।
***** मदन प्रकाश
अनुपम नज़्म सही चयन ।
ReplyDeleteअनुपम नज़्म सही चयन ।
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय.
ReplyDeleteसादर नमन