मग में फैले घने अँधेरे, नहीं सूझती राह।
पग-पग काँटे बिछे भले हों, मत करना परवाह।।
जो चाहोगे वही मिलेगा, त्यागो राग बिहाग।
मंजिल पाने हेतु पथिक तू, जला हृदय में आग।।
जब भी दुख की घिरें घटाएँ, खुशियों के पल खोज।
गिरे समय की जहाँ चंचला, उससे भर ले ओज।।
अनुकूलन का नित जीवन में, नहीं अलापो राग।
मंजिल पाने हेतु पथिक तू, जला हृदय में आग।।
शक्तिपुंज के स्रोत तुम्हीं हो, अपने को पहचान।
दृष्टि लक्ष्य रख खुद को मानो, अर्जुन का प्रतिमान।।
चाह अगर है मिले सफलता, बल-विवेक से जाग।
मंजिल पाने हेतु पथिक तू, जला हृदय में आग।।
*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'