Sunday, 17 November 2024

गीत - ऐ पथिक

 

मंजिल पाने हेतु पथिक तू, जला हृदय में आग।
नित्य कर्म-पथ राही चलता, जागें उसके भाग।।

मग में फैले घने अँधेरे, नहीं सूझती राह।
पग-पग काँटे बिछे भले हों, मत करना परवाह।।
जो चाहोगे वही मिलेगा, त्यागो राग बिहाग।
मंजिल पाने हेतु पथिक तू, जला हृदय में आग।।

जब भी दुख की घिरें घटाएँ, खुशियों के पल खोज।
गिरे समय की जहाँ चंचला, उससे भर ले ओज।।
अनुकूलन का नित जीवन में, नहीं अलापो राग।
मंजिल पाने हेतु पथिक तू, जला हृदय में आग।।

शक्तिपुंज के स्रोत तुम्हीं हो, अपने को पहचान।
दृष्टि लक्ष्य रख खुद को मानो, अर्जुन का प्रतिमान।।
चाह अगर है मिले सफलता, बल-विवेक से जाग।
मंजिल पाने हेतु पथिक तू, जला हृदय में आग।।

*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'

Sunday, 10 November 2024

सजग वहीं रहता इंसान - गीत

 

समाचार पढ़ भिज्ञ रहें जो, सजग वहीं रहता इंसान।
समाचार पढ़कर ही जनता, खबरों का लेती संज्ञान।।

सतयुग त्रेता द्वापर में भी, खबरों का था खूब प्रबन्ध।
नारद यह दायित्व निभाते, देवों का उनसे अनुबन्ध।।
समाचार सब दूत सुनाते, आकर राजा के दरबार,
पत्र-सूचना के माध्यम से, करे सूचना सदा प्रदान।
समाचार पढ़कर ही जनता, खबरों का लेती संज्ञान।।

समाचार पढ़कर ही जाने, फैल रहा कितना उन्माद।
संसद तक में उलझे नेता, करते रहते व्यर्थ विवाद।।
छान-बीन कर सम्पादक भी, खूब जमाते अपनी धाक,
पत्रकार कुछ खोजी होते, चौकस हो रहते गतिमान।
समाचार पढ़कर ही जनता, खबरों का लेती संज्ञान।।

ऊल-जलूल खबरों से बचना, झूठी खबरों की भरमार।
अपना उल्लू सीधा करते, करें सदा उनसे परिहार।।
सत्य जानना सब जनता को,संविधान देता अधिकार,
अफवाहों पर ध्यान न देना,कहते रहते सभी सुजान।
समाचार पढ़कर ही जनता, खबरों का लेती संज्ञान।।

*** लक्ष्मण लड़ीवाला 'रामानुज'

Sunday, 3 November 2024

दिवाली - मुक्तक द्वय

 

सागर-मंथन से हुआ, लक्ष्मी का अवतार,
पूजन माँ का सब करें, करें खूब मनुहार,
सबको धन की चाह है, क्या राजा क्या रंक -
धन-वैभव माँ दे रही, ख़ुशियों का आधार।।

करते हैं सब वंदना, देकर छप्पन भोग,
धन-वैभव सब माँगते, लक्ष्मी से संयोग ,
आशिष लक्ष्मी का मिले, बनता नर धनवान -
शुभ दिन कार्तिक माह में, बनता यह शुभ योग।।

*** मुरारि पचलंगिया

Sunday, 27 October 2024

रूप बदलता जीवन - एक गीत

 

पल पल रूप बदलता जीवन
कई रूप में ढलता जीवन

श्रृंगार करे मधुर पलों में
पलक भिगोए करुण क्षणों में
रौद्र रूप धर कभी डराये
खिल खिल हँस ये हमें हँसाये

कभी भयानक लगता जीवन
पल पल रूप बदलता जीवन

वीर रूप जब जीवन धारे
खल रिपुओं को फौरन मारे
बनकर योगी जग ये त्यागे
जन सेवा जब जीवन लागे

ईश - रूप में रमता जीवन
पल-पल रूप बदलता जीवन

जैसा चाहे रूप धरे ये
पर दुखियों की पीर हरे ये
सतकर्मी बन पूजा जाये
दुष्कर्मी हो जूता खाये

कनक बने जब तपता जीवन
पल पल रूप बदलता जीवन

***अवधूत कुमार राठौर 'अवध'
पचमढ़ी मार्ग, पिपरिया
9425682819

Sunday, 20 October 2024

नयनों में जो स्वप्न सजाए - एक गीत

 

नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।
परियों वाली एक कहानी, नयनों में जो स्वप्न सजाए।

शुभ्र तारिका झिलमिल गाये,
प्रीति भरी ज्यों माँ की लोरी ।
पलकों में छिप निंदिया रानी,
सुनती-गुनती लगे विभोरी।

अंजन वारे गगन निहारे, श्वेत अभ्र ज्यों इत-उत धाए।
नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।

उन्मीलित कोरों से प्रतिपल,
चौथ चाँदनी छलके आँगन।
तमस भूल कर झटपट नभ पर,
नर्तन करती निशा सुहागन।

हुई निनादित नवरस कविता, प्रतिपल जो उन्माद जगाए।
नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।

"लता" प्रेम की गूँथे लड़ियाँ,
खो कर मद को हँस-हँस मिलना।
सुख-दुख में दृढ़ता समता से,
सुप्त न हो बचपन का खिलना।

कलह आपसी कुटिल कामना, मत करिए जो चैन गँवाए।
नित्य लिखे सुख की परिभाषा, निशा जागती हमें सुलाए।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday, 13 October 2024

रावण वध - चौपाई छंद

 

रावण ने जब कहा न माना।
रघुवर धनुष बाण संधाना।।
नयन विशाल अग्नि की ज्वाला।
हुए प्रकंपित काल कराला।।

स्वयं काल जनु धरे शरीरा।
आए लंक राम रण धीरा।।
जटा जूट भुज पुष्ट अजाना।
देखि रूप रावण भय माना।।

प्रभु कोदंड कीन्ह टंकारा।
शत्रु सैन्य में हाहाकारा।।
रामचंद्र प्रभु छोड़ें तीरा।
बेधे एक अनेक शरीरा।।

सरिता - रक्त बही रण ऐसे।
नग से कीच बहे जानु जैसे।।
देखा राम कीस अकुलाने।
सायक प्रभू कान तक ताने।।

शर संधानि नाभि में मारा।
गिरा धरणि मुख-राम उचारा।।
डोलत मही देखि रघुवीरा।
कई खंड कर दैत्य शरीरा।।

*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'

Sunday, 6 October 2024

स्वर्ग सरीखा वह आवास - एक गीत

 

बसी आज तक उस घर यादें , जहाँ मिला दादी का प्यार।
खेल-कूद कर बड़े हुए थे, सुविधाओं की क्या दरकार।।

बहन बुआ के बच्चे आते, खेले सब मिलकर स्वच्छन्द।
दादा-दादी माँ-बापू के, किस्से सुन आता आनन्द।।
कभी पड़ोसी तक से हमको, मिलती प्यार भरी फटकार।
बसी आज तक उस घर यादें, .....

जहाँ सभी सदस्य आपस में, सुबह शाम करते हो द्वन्द।
लगे काटने घर की चौखट, लगता पड़ा गले में फन्द।।
बिना प्रेम के खाली आँगन, नहीं कहाता शुभ घर द्वार।
बसी आज तक उस घर यादें, .....

खुशियों से घर आँगन महके, स्वर्ग सरीखा वह आवास।
बजे बाँसुरी जहाँ चैन की, उस घर ही होता उल्लास।।
अपनापन का भान जहाँ हो, मिले तसल्ली उस घर बार।
बसी आज तक उस घर यादें, .....

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

गीत - ऐ पथिक

  मंजिल पाने हेतु पथिक तू, जला हृदय में आग। नित्य कर्म-पथ राही चलता, जागें उसके भाग।। मग में फैले घने अँधेरे, नहीं सूझती राह। पग-प...