विधान - ७भगण+गुरु गुरु=२३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण समतुकांत।
१
खेवनहार तुम्हीं जग-तारक नाथ सभी हम आप सहारे।
मोह तरंग उठे निशि-वासर कौन हमें भव पार उतारे।
कौन डुबाय सके हमको जब राघव खेवनहार हमारे।।
२
सिंधु अथाह यथा जगजीवन राघव पार करो मम नैया।
तारनहार तुम्ही भवसागर आप बिना प्रभु कौन खिवैया।
ग्राह अजामिल दैत्य अनेकन तार दिए पय - सिंधु बसैया।
आज यही प्रभु 'चंद्र' निवेदन तारहु मत्तगयंद लिखैया।।
*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"
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