देखन में सुंदर लगें, ये घन पूर्ण सफेद।
हम बारिश करते नहीं, कहते श्वेत सखेद।।
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काले बदरा नीर ले, कहीं गए हैं रेंग।
उनकी बाट न जोहिए, दिखा दिए हैं ठेंग।।
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बिन पानी इस साल तो, फसल गई मुरझाय।
व्यापी चिंता कृषक में, तनिक न निद्रा आय।।
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गाँव छोड़ अब जा रहे, लेकर पेट मजूर।
बचे हुए जो गाँव में, वे हैं अति मजबूर।।
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राजनीति नेता करें, साहब हैं खुशहाल।
हालत पतली देश की, जनजीवन बदहाल।।
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***** राजकुमार धर द्विवेदी
बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे...
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय Kailash Sharma जी.
Deleteसादर नमन
साधुवाद, आदरणीय कैलाश शर्मा जी। नमन।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई राजकुमार धर द्विवेदी जी.
Deleteसादर नमन
बहुत सारगर्भित उत्कृष्ट दोहे...
Deleteसादर आभार मुरारी पचलंगिया जी, सादर नमन
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